Skip to main content

Posts

Showing posts from June, 2015

योग दिवस: वैश्विक शान्ति और समन्वय की आधारशिला

अन्तरराष्ट्रीय योग दिवस का मनाया जाना एक परिवर्तन का संकेत है। यह एक Paradigm shift का श्रीगणेश है, जिसमें पूरा विश्व एक साथ है। कापरनिकस के बाद एक परिवर्तन आयाथा, डेकार्ट के साथ एक परिवर्तन आया था जिसने विश्व का नक्शा ही बदल दिया। इस परिवर्तन ने विश्व को बनाया या बिगाड़ा यह एक लम्बा विमर्श है। पर यह तो तय है कि इससे कुछ आबाद हुये तो कुछ बर्बाद हुये, पूरा विश्व एक साथ आह्लादित नहीं हुआ। आज योग दिवस से जो परिवर्तन हो रहा है, आइंसटाइन के बाद से विश्व इस परिवर्तन की आशा कर रहा था। यह एक सकारात्मक परिवर्तन है। यहाँ कहीं संहार नहीं सर्वत्र सृष्टि है, कहीं शस्त्र-प्रहार नहीं सर्वत्र श्रद्धा, भक्ति, अनुरक्ति है। भौतिकता से बँधे संसार की यह मुक्ति है। योगदिवस भौतिकता से अध्यात्म की ओर प्रस्थान है। इस प्रस्थान में पूरा विश्व कदमताल कर रहा है। योगदिवस भारत-भारतीयता की वह विजय है जिसके लिये कभी रक्तपात नहीं हुआ, जिसके लिये कभी अस्त्र-शस्त्र नहीं चमके, जिसने कभी व्यर्थ प्रसार की स्वार्थपूर्ण इच्छा नहीं रखी, जिसने कभी धनबल और बाहुबल के सहारे हृदयों को नहीं जीता। यह ऋषियों की निःस्वार्थ, सेवा, साधन

तुम किस मुँह से बोल रहे हो?

आजकल गहरे लाल से खूनी लाल, रक्तपिपासु लाल और थक-हारकर हल्के लाल बने जितने वामपंथी संगठन और गिरोह इस देश में परजीवियों की तरह पल रहे हैं वे भी कांग्रेसी सुर में अपनी चिरपरिचित शैली में #Lalitmodi प्रकरण पर हुका-हुवाँ-हुवाँ कर रहे हैं। इसमें तनिक भी आश्चर्य नहीं है। यही इन आस्तीन के साँपों की कार्यनीति रही है जिसके कारण ये स्वतन्त्रता के बाद से ही एक दबाव समूह बनाकर भारत सरकार से प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से अपनी बेजा माँगे मनवाते रहें हैं और ऐश फरमाते रहे हैं। ये गरीबों, दलितों एवं महिलाओं के आँसुओं में उपस्थित सोडियम की मात्रा का सौदा करके अपना घरौंदा मजबूत करते रहे हैं। आज जब सरकाअर के विकासोन्मुख नीतियों द्वारा इनके सोडियम के धन्धे में दिनोंदिन कमीं आ रही है और दुकान पर ताला लगने की आशंका है तो ये  उस जोंक की तरह छटपटा रहें हैं जो किसी पशु के शरीर से खून चूस-चूसकर मोटी हो रही थी पर अभी-अभी उस पर नमक दाल दिया गया हो। इन्हें ठीक से पहचानने का यह सुअवसर है। ये वही लोग हैं जो अफजल गुरु की फाँसी का विरोध करते हैं और मानवाधिकार की दुहाई देते हुये मार्च करते हैं। ये वही लोग हैं जो गिलानी