क्या बात है! आजकल जनता पार्टी "परिवार" एक होने जा रहा है। अरे! न केवल जा रहा है अपितु गले मिलने के लिये आकुल, आतुर है, छटपटा रहा है। अब न कोई समाजवादी पार्टी होगी, न जनता दल यूनाटेड, न राष्ट्रीय जनता दल, न जनता दल (एस) , न इंडियन नेशनल लोकदल और न कोई समाजवादी जनता पार्टी, अब बस एक "परिवार?" होगा जनता पार्टी। मुलायम, शरद यादव, नितीश, लालू, देवेगौडा, दुष्यंत चौटाला और कमल मोरारका परस्पर गले मिलने हेतु लपक रहे हैं। यही नहीं वैवाहिक सम्बन्ध भी स्थापित किये जा रहे हैं तथा उसकी सम्भावनायें भी तलाशी जा रही हैं। आखिर कौन सी वह बात है जो इन सभी शत्रुता के अभिनेताओं और शत्रुओं में इतना असीम प्रेमरस घोल रही है? यह सोचने की बात है भाई कि कल तक लालू को पानी पी-पीकर कोसने वाले नितीश और नितीश को पानी पी-पीकर गरियाने वाले लालू आज परस्पर स्वस्तिवाचन कर रहे हैं! कौन सा Unifying Factor है जिसने दिलों की सारी कड़वाहट में मधुमिश्रित कर दिया? स्वाभाविक शत्रुओं और कलाबाजों की ऐसी अद्भुत मित्रता कभी-कभी देखने को मिलती है।
अरे नहीं ये स्वाभाविक कलाबाज ऐसे ही नहीं एक हुये हैं। आजकल एक ऐसी शक्ति इनके समक्ष आ खड़ी हुयी है जिससे ये सभी अपनी रंजिशे भूल एक रंग में रंगने को (दिखावा के लिये ही सही) विवश हो गये हैं। इनके समक्ष आसन्न अस्तित्त्व का संकट इन्हें एक-दूजे का खेवईया बनने को बाध्य कर रहा है। न चाहते हुये भी ये एक-दूसरे क जुआठा कांधे पर धरे हुये खेत जोतने के लिये तैयार हो रहे हैं। इन सबकी स्थिति बिलकुल वैसी ही हो गयी है जैसे रीतिकालीन कवि बिहारी के दोहों में चिरवैरी, स्वाभाविक शत्रुओं सर्प, मयूर, हिरण और बाघ की हो गयी थी-
आजकल भी प्रचण्ड तेज से अपना अस्तित्त्व बचाने की जुगत में ’जनता-जगत’ ’तपोवन’ सा हो रहा है।
अरे नहीं ये स्वाभाविक कलाबाज ऐसे ही नहीं एक हुये हैं। आजकल एक ऐसी शक्ति इनके समक्ष आ खड़ी हुयी है जिससे ये सभी अपनी रंजिशे भूल एक रंग में रंगने को (दिखावा के लिये ही सही) विवश हो गये हैं। इनके समक्ष आसन्न अस्तित्त्व का संकट इन्हें एक-दूजे का खेवईया बनने को बाध्य कर रहा है। न चाहते हुये भी ये एक-दूसरे क जुआठा कांधे पर धरे हुये खेत जोतने के लिये तैयार हो रहे हैं। इन सबकी स्थिति बिलकुल वैसी ही हो गयी है जैसे रीतिकालीन कवि बिहारी के दोहों में चिरवैरी, स्वाभाविक शत्रुओं सर्प, मयूर, हिरण और बाघ की हो गयी थी-
कहलाने एकत बसत अहि, मयूर, मृग, बाघ ।
जगत तपोवन सो कियो दीरघ दाघ, निदाघ ॥
भगवान् मार्तण्ड ने अपना तेज इतना प्रचण्ड किया कि ग्रीष्म ऋतु में प्रचण्ड ताप के अनुभव से पूरा जगत् तपोवन के समान सात्विकवृत्ति का हो गया और स्वाभाविक शत्रु एक ही स्थान पर अपनी शत्रुता छोड़कर एकत्रित हो गर्मी के दिन गिनने लगे। मयूर सर्प को खाने हेतु लपकता हुआ नहीं दिखा, बाघ हिरन का शिकार भूल गया।आजकल भी प्रचण्ड तेज से अपना अस्तित्त्व बचाने की जुगत में ’जनता-जगत’ ’तपोवन’ सा हो रहा है।
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