भाजपा ने श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा प्रधानमंत्री पद के शपथ ग्रहण समारोह में दक्षेस के सभी देशों को न्यौता दिया जाना निश्चय ही स्वागतयोग्य कदम है। इसकी सराहना होनी चाहिये। सांस्कृतिक और भौगोलिक रूप से हमारे चिर सहचर और सहगामी इन देशों को विशेष स्थान देना आवश्यक ही नहीं अपरिहार्य था। हजार झंझावातों, कटुता और मनमुटाव के बीच भी हम इस अकाट्य सत्य को नहीं विस्मृत कर सकते की हममें आधारभूत रूप से एक ही संस्कृति का प्रवाह अनुस्यूत है। इन सभी दक्षेस देशों के जन-मन में भावों का जो उद्गार है वह एक धरातल पर जाकर कहीं न कहीं एक होता है ठीक उसी तरह जैसे डेल्टा की सभी धारयें समुद्र में एक हो जाती है।
भाजपा के इस समन्वयकारी और सौहार्द्रपूर्ण कदम की कुछ लोग पानी पी-पीकर निन्दा कर रहे हैं । आश्चर्य की पराकाष्ठा तब होती है जब हम देखते हैं कि इस मुहिम में वे लोग बहुत आगे हैं जो कल तक इन सभी देशों के बहुत बड़े पक्षधर हुआ करते थे, जो बांग्लादेशी घुसपैठ पर मौन, पाकिस्तानी हिन्दुओं पर मौन, कश्मीरी पण्डितों पर मौन, तिब्बत पर मुँह सिले बैठे थे। आज यही लोग इसकी आलोचना कर रहे हैं । लोटे तो बहुत देखे थे बेपेंदी के पर ऐसे बेपेंदी के बुद्धिजीवी अब सहजता से दिखने लगे हैं। मुझे तो कई बार लगता है कि कही यदि भाजपा मार्क्स और माओ की गलती से प्रशंसा कर दे हालांकि वह ऐसा करेगी नहीं तो ये लोग मार्क्स और माओ को भी पानी पी-पी कर गली देने लगेंगे । ऐसे अनेकमुँहों को अब हालांकि जनता पहचानने लगी है परन्तु अब भी इनका पूरा रंग धुलना शेष है।
वर्तमान वैश्विक परिदृश्य में अपने पड़ोसी देशों से अच्छा सम्बन्ध रखना, एक सौहार्द्रपूर्ण व्यवस्था बनाना अपरिहार्य है। सम्पर्क सजगता और सहजता दोनों लाता है। सहजता से बहुत सी दुर्गटनायें और दुर्योग टल सकता है। सहजता स्थापित होंने से गलतफहमियाँ भी नहीं पनपती और सम्बन्ध मजबूत होता है। निश्चय ही यह भाजपा का बहुत ही उदार और दूरदर्शी कदम है जो भारतीय संस्कृति की छवि को धवल जल पर प्रतिबिम्ब सा प्रदर्शित करता है।
भाजपा के इस समन्वयकारी और सौहार्द्रपूर्ण कदम की कुछ लोग पानी पी-पीकर निन्दा कर रहे हैं । आश्चर्य की पराकाष्ठा तब होती है जब हम देखते हैं कि इस मुहिम में वे लोग बहुत आगे हैं जो कल तक इन सभी देशों के बहुत बड़े पक्षधर हुआ करते थे, जो बांग्लादेशी घुसपैठ पर मौन, पाकिस्तानी हिन्दुओं पर मौन, कश्मीरी पण्डितों पर मौन, तिब्बत पर मुँह सिले बैठे थे। आज यही लोग इसकी आलोचना कर रहे हैं । लोटे तो बहुत देखे थे बेपेंदी के पर ऐसे बेपेंदी के बुद्धिजीवी अब सहजता से दिखने लगे हैं। मुझे तो कई बार लगता है कि कही यदि भाजपा मार्क्स और माओ की गलती से प्रशंसा कर दे हालांकि वह ऐसा करेगी नहीं तो ये लोग मार्क्स और माओ को भी पानी पी-पी कर गली देने लगेंगे । ऐसे अनेकमुँहों को अब हालांकि जनता पहचानने लगी है परन्तु अब भी इनका पूरा रंग धुलना शेष है।
वर्तमान वैश्विक परिदृश्य में अपने पड़ोसी देशों से अच्छा सम्बन्ध रखना, एक सौहार्द्रपूर्ण व्यवस्था बनाना अपरिहार्य है। सम्पर्क सजगता और सहजता दोनों लाता है। सहजता से बहुत सी दुर्गटनायें और दुर्योग टल सकता है। सहजता स्थापित होंने से गलतफहमियाँ भी नहीं पनपती और सम्बन्ध मजबूत होता है। निश्चय ही यह भाजपा का बहुत ही उदार और दूरदर्शी कदम है जो भारतीय संस्कृति की छवि को धवल जल पर प्रतिबिम्ब सा प्रदर्शित करता है।
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