Skip to main content

Posts

Showing posts from April, 2009

योगवाशिष्ठ

योगवाशिष्ठ को महर्षि द्वारा रचित माना जाता है। योगवाशिष्ठ पूर्णतः दार्शनिक ग्रन्थ है। इसमें रामकथा के माध्यम से मोक्षोपाय का कथन किया गया है इसीलिये इसे मोक्षोपाय शास्त्र भी कहा जाता है। रामकथा इसकी मुख्य कथा है जिसके अन्तर्गत अवान्तर आख्यानों अवं उपाख्यानों से सच्चिदानन्द ब्रह्म की प्राप्ति का उपाय बताया गया है। योगवाशिष्ठ में महर्षि वशिष्ठ जीए स्वयं कहते हैं कि द्वारा ज्ञात वस्तु का ज्ञान दूसरे को अनुभूत करवाने के लिये दृष्टान्त से बढ़कर कोई दूसरा साधन नही है। इसीलिये इस ग्रन्थ में हमें पग - पग पर दृष्टान्त मिलता है। योगवाशिष्ठ की रचना किसी साधारण मानस द्वारा सम्भव ही नही हो सकती इसकी रचना कोई त्रिकालज्ञ उदात्त ऋषि ही कर सकता है जिसका मानस मुक्त मानस हो। क्योंकि बद्ध मानस मुक्त मानस की बात ही नही कर सकता। योगवाशिष्ठ का रचनाकार मात्र एक ऋषि ही नहीं वरन् एक कवि भी है। कवि अथवा ऋषि का कार्य मात्र उपदेश देना ही नहीं होता अपितु उपदिष्ट वस्तु